
लालकुआं ब्रेकिंग
“रामभरोसे सुरक्षा व्यवस्था: टूटी तकनीक, गायब निगरानी और लापरवाह पुलिस”
— रिपोर्ट: मुकेश कुमार / स्थान लालकुआं
कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद देशभर में सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट पर हैं। केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को सख्त हिदायत दी है कि सीमावर्ती इलाकों में निगरानी और चौकसी बढ़ाई जाए। उत्तराखंड सरकार ने भी इन निर्देशों पर त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए राज्य की सीमाओं को हाई अलर्ट पर रखने का आदेश जारी किया।
लेकिन नैनीताल जिले के प्रवेश द्वार लालकुआं शहर की स्थिति बिल्कुल उलट है—यहां की सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह रामभरोसे नजर आ रही है।

चेकपोस्ट पर न सीसीटीवी, न बिजली, न पुलिसकर्मी
लालकुआं पुलिस चेकपोस्ट की हकीकत बेहद चौंकाने वाली है। चेकपोस्ट पर लगे CCTV कैमरे पिछले कई महीनों से टूटे पड़े हैं। वहां मौजूद टीनशेड में बिजली का कोई इंतजाम नहीं है और सबसे अहम बात—चेकिंग के लिए कोई पुलिसकर्मी भी तैनात नहीं दिखा। यानी खतरा चाहे किसी भी स्तर का क्यों न हो, यहां कोई देखने-सुनने वाला नहीं है।
शहर में फैला अंधाधुंध: कैमरे बंद, सिस्टम ठप
न केवल चेकपोस्ट, बल्कि लालकुआं शहर के कई प्रमुख चौराहों और भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में लगे CCTV कैमरे या तो बंद हैं या पूरी तरह खराब हो चुके हैं। जो कैमरे मौजूद हैं, वे महज दिखावे के लिए हैं—जिनका रिकॉर्डिंग सिस्टम या तो ठप पड़ा है या कोई निगरानी कर ही नहीं रहा।

कोतवाली प्रशासन लापरवाह, क्या किसी बड़े हादसे का इंतज़ार?
देश की सुरक्षा को लेकर केंद्र जहां सजग है, वहीं स्थानीय पुलिस-प्रशासन की ढिलाई समझ से परे है। लालकुआं कोतवाली पुलिस की लापरवाही उस वक्त और गंभीर हो जाती है जब देश की सीमाएं संवेदनशील हालात से गुजर रही हों। सवाल यह उठता है कि क्या यहां की पुलिस प्रशासन किसी बड़े हादसे का इंतज़ार कर रही है?
नैनीताल-ऊधमसिंह नगर सीमा पर सुरक्षा नदारद
राज्य सरकार की ओर से सभी सीमाओं पर कड़ी निगरानी का आदेश जारी हुआ, लेकिन नैनीताल और ऊधमसिंह नगर की सीमा, जो लालकुआं होकर गुजरती है, वहां कोई ठोस इंतजाम नजर नहीं आ रहा। यह लापरवाही सीधे तौर पर राज्य सरकार के आदेशों की अवहेलना है।

जनता सवाल पूछ रही है:
- कब सुधरेगी लालकुआं की सुरक्षा व्यवस्था?
- कौन जिम्मेदार है टूटी तकनीक और गायब पुलिसिंग के लिए?
- क्या किसी बड़े हादसे के बाद ही जागेगा प्रशासन?
समय रहते अगर स्थिति नहीं सुधारी गई, तो इसका खामियाजा पूरे शहर को भुगतना पड़ सकता है।
fikra.in आपसे अपील करता है कि इस मुद्दे को गंभीरता से लें, जिम्मेदारों से सवाल पूछें और सुरक्षित उत्तराखंड के लिए आवाज़ उठाएं।