विकास के नाम पर पहाड़ी राज्यों के साथ धोखा : सोनम वांगचुक

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विकास के नाम पर पहाड़ी राज्यों के साथ धोखा : सोनम वांगचुक
उत्तराखंड महिला मंच और इंसानियत मंच की गोष्ठी में उठी पहाड़ों की आवाज, लद्दाख से लेकर उत्तराखंड तक जनसंघर्ष की जरूरत पर दिया जोर

देहरादून |
“विकास के नाम पर पहाड़ी राज्यों के साथ ठगी हो रही है। स्थानीय जनता की सहमति के बिना कॉर्पोरेट के दबाव में परियोजनाएं थोपी जा रही हैं। यह सिलसिला अब रुकना चाहिए और इसके लिए संघर्ष जरूरी है।” — यह कहना है मशहूर वैज्ञानिक, शिक्षाविद, पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक का। वे देहरादून स्थित शहीद स्मारक पर उत्तराखंड महिला मंच और उत्तराखंड इंसानियत मंच द्वारा आयोजित विचार गोष्ठी में बोल रहे थे।

लद्दाख और उत्तराखंड की पीड़ा एक जैसी
वांगचुक ने साफ शब्दों में कहा कि केंद्र सरकार ने जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया, तो लोगों को लगा कि यह उनके विकास का द्वार खोलेगा। लेकिन धीरे-धीरे यह स्पष्ट हुआ कि यह तो स्थानीय जनता को निर्णय प्रक्रिया से बाहर करने की साजिश थी। उन्होंने कहा, “लद्दाख के लोग अब महसूस कर रहे हैं कि उन्हें धोखा दिया गया है। अब उनकी कोई राजनीतिक आवाज संसद या विधानसभा में नहीं है।”

उन्होंने चेतावनी दी कि अगर केंद्र सरकार ने 27 मई को होने वाली वार्ता में लद्दाख की जनता की मांगों को नहीं माना, तो अलग राज्य की मांग के साथ एक व्यापक जन आंदोलन खड़ा किया जाएगा।

पानी और पर्यावरण की चेतावनी
वांगचुक ने यह भी रेखांकित किया कि लद्दाख जैसे दुर्गम और संवेदनशील क्षेत्र में जनसंख्या और पर्यटन का अत्यधिक दबाव पर्यावरणीय संकट को जन्म देगा। “जहां स्थानीय लोग दिन में 5–10 लीटर पानी से गुजारा करते हैं, वहां बाहरी लोग 200–500 लीटर पानी की मांग करेंगे। यह असंतुलन विनाश का कारण बनेगा,” उन्होंने आगाह किया।

उत्तराखंड में भी वही स्थिति
उत्तराखंड इंसानियत मंच के डॉ. रवि चोपड़ा ने कहा कि लद्दाख की तरह ही उत्तराखंड में भी विकास की राह कॉर्पोरेट के इशारों पर तय की जा रही है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड ने राज्य आंदोलन के संघर्ष से सीखा है और अब लद्दाख की लड़ाई में भी साथ देगा।

राज्य आंदोलन की अधूरी कहानी
उत्तराखंड महिला मंच की वरिष्ठ नेत्री कमला पंत ने राज्य गठन के मूल उद्देश्यों की याद दिलाते हुए कहा कि आज राज्य भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता और क्षेत्रवाद की चपेट में है। “यह वह उत्तराखंड नहीं है जिसके लिए आंदोलनकारियों ने बलिदान दिए थे,” उन्होंने कहा।

जन आंदोलन को मिलेगा नया बल
कार्यक्रम का संचालन कर रहे वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता त्रिलोचन भट्ट ने वांगचुक की मौजूदगी को “मानसून की पहली बारिश जैसी राहत” बताते हुए कहा कि उत्तराखंड के मौजूदा संकटों के बीच उनका आना एक नई उम्मीद जगाता है।

कार्यक्रम में निर्मला बिष्ट, नंद नंदन पांडे, तुषार रावत, विजय भट्ट, रजिया बेग, हरिओम पाली, आरिफ खान, हेमलता नेगी, सीमा नेगी, हिमांशु अरोड़ा, इला सिंह, हिमांशु चौहान समेत कई समाजसेवी और जागरूक नागरिक शामिल हुए।

टिप्पणी: यदि आपने 3 इडियट्स फिल्म देखी है तो आपको रणछोड़दास चांचड़ उर्फ फुंसुक वांगड़ू का किरदार याद होगा — यह किरदार सोनम वांगचुक से ही प्रेरित है। और आज वास्तविक जीवन में फुंसुक वांगड़ू, पहाड़ों की आवाज बनकर खड़े हैं।

देहरादून त्रिलोचन भट्ट जी के सहयोग से


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