
2027 में होगी देश की 16वीं जनगणना, पहली बार शामिल होंगे जातिगत आंकड़े, उत्तराखंड सहित पहाड़ी राज्यों में पहले चरण में होगी गिनती
नई दिल्ली/देहरादून : केंद्र सरकार ने वर्ष 2027 में होने वाली 16वीं जनगणना में जातिगत आंकड़ों को शामिल करने का ऐतिहासिक फैसला लिया है। आजादी से पहले देश में छह जनगणनाएं (1872 से 1941 तक) और आजादी के बाद अब तक सात बार जनगणना (1951 से 2011 तक) कराई जा चुकी हैं, लेकिन किसी भी जनगणना में जातिगत विवरण को आधिकारिक रूप से शामिल नहीं किया गया।

अब पहली बार केंद्र सरकार ने इसे शामिल करने की मंजूरी दी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को जनगणना की तैयारियों को लेकर उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक की और कहा कि “सामाजिक न्याय की योजनाओं की नींव जातीय आंकड़ों पर ही आधारित होनी चाहिए।” उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि गिनती का काम पारदर्शी और समयबद्ध तरीके से पूरा हो। यह जनगणना पूरी तरह डिजिटल होगी और दो चरणों में कराई जाएगी। उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और पूर्वोत्तर के राज्यों में पहले चरण की शुरुआत 1 अक्टूबर 2026 से होगी, जबकि देश के अन्य हिस्सों में 1 मार्च 2027 की मध्यरात्रि को संदर्भ तिथि मानकर गणना की जाएगी। उत्तराखंड के जिलों को विशेष निर्देश दिए गए हैं कि दुर्गम क्षेत्रों में स्थानीय कर्मियों की मदद से समय पर आंकड़े जुटाए जाएं। लगभग 34 लाख कर्मचारियों को इस कार्य में लगाया जाएगा और मोबाइल एप के माध्यम से सूचनाएं एकत्र की जाएंगी। केंद्र सरकार 17 जून को अधिसूचना जारी कर राज्यों को विस्तृत कार्ययोजना भेजेगी। अमित शाह ने मुस्लिम समाज के पसमांदा वर्ग से भी अपील की है कि वे अपनी सही जातिगत जानकारी दर्ज कराएं, जिससे उन्हें योजनाओं का समुचित लाभ मिल सके। सरकार का मानना है कि यह जनगणना सामाजिक विकास और नीति निर्माण की दिशा में एक क्रांतिकारी बदलाव का आधार बनेगी।