
लालकुआं में मॉक ड्रिल: आपदा से निपटने की तैयारी या सिर्फ औपचारिकता?
वरिष्ठ अधिकारियों की गैरमौजूदगी में हुआ अभ्यास, 10 लोगों का सफल रेस्क्यू
रिपोर्ट – मुकेश कुमार,
लालकुआं – आपदा की घड़ी में जान-माल की सुरक्षा के लिए किए जाने वाले मॉक ड्रिल कार्यक्रम में अगर बड़े अधिकारी ही न हों, तो आमजन कितना सुरक्षित महसूस करेगा? सोमवार को लालकुआं के खड्डी मोहल्ला और रेलवे क्रॉसिंग क्षेत्र में जिला प्रशासन द्वारा आयोजित मॉक ड्रिल में यही सवाल लोगों के बीच उठता रहा।
जहां राजस्व, पुलिस, स्वास्थ्य, अग्निशमन और नगर पंचायत विभाग की टीमें मुस्तैद दिखीं, वहीं जिला प्रशासन के शीर्ष अधिकारी नदारद रहे, जिससे इस पूरी कवायद को लेकर गंभीरता पर प्रश्नचिन्ह लग गया।

ड्रिल के दौरान आपदा की काल्पनिक स्थिति में 8 लोगों को रेस्क्यू कर एंबुलेंस से नजदीकी अस्पताल पहुंचाया गया, जबकि 2 गंभीर रूप से घायल लोगों को सुशीला तिवारी अस्पताल हल्द्वानी रेफर किया गया, जहां उपचार के बाद उन्हें छुट्टी दे दी गई।
नगर पंचायत अधिशासी अधिकारी राहुल सिंह, कोतवाल दिनेश चंद्र फर्त्याल और चिकित्सा प्रभारी डॉ. लव पांडे की देखरेख में यह ड्रिल सम्पन्न हुई। फायर ब्रिगेड और पुलिस बल की तत्परता ने यह साबित किया कि आपसी समन्वय से आपदा में जान बचाई जा सकती है।

इस मौके पर स्थानीय नागरिकों को आपदा प्रबंधन संबंधी जरूरी जानकारी दी गई—जैसे बाढ़, भूस्खलन या आकस्मिक दुर्घटनाओं के समय क्या करें और क्या न करें। टीमों ने लोगों को जागरूक करते हुए उनके सवालों के जवाब भी दिए।

एसडीएम राहुल शाह ने कहा, “यह मॉक ड्रिल शासन के निर्देश पर पूरे जिले में आयोजित की गई थी। लालकुआं के संवेदनशील क्षेत्रों में रेस्क्यू कर यह दिखाया गया कि समय पर कार्रवाई संभव है।” उन्होंने सभी विभागों की भागीदारी की सराहना करते हुए कहा कि भविष्य में और भी मॉक ड्रिल आयोजित कर तैयारियों को और बेहतर किया जाएगा।
लेकिन वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों की गैरहाज़िरी को लेकर मौके पर मौजूद लोगों ने गहरी नाराजगी जताई। एक स्थानीय नागरिक ने कहा, “अगर अभ्यास के समय ही बड़े अधिकारी नहीं दिखे, तो असली आपदा में कौन आएगा?”
मॉक ड्रिल ने तकनीकी रूप से अपने लक्ष्य पूरे किए, लेकिन प्रशासनिक उपस्थिति की कमी ने इसे एक औपचारिक कार्यक्रम की छवि दे दी। अगर इसे वाकई कारगर बनाना है, तो प्रत्येक स्तर पर गंभीर भागीदारी और जनसहयोग अनिवार्य है।