बिन्दुखत्ता में वन आरक्षण प्रक्रिया अवैध, राजस्व ग्राम बनाने की मांग फिर तेज

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वन अधिकार समिति ने जिलाधिकारी नैनीताल को सौंपा पुनः अभ्यावेदन, कहा—1966 की अधिसूचना रद्द कर पूरी की जाए बन्दोबस्ती प्रक्रिया
हल्द्वानी, 18 अक्टूबर।
उत्तराखंड के सबसे बड़े वन ग्रामों में से एक बिन्दुखत्ता को राजस्व ग्राम का दर्जा दिलाने की मांग एक बार फिर तेज हो गई है। वन अधिकार समिति, बिन्दुखत्ता ने जिलाधिकारी नैनीताल को एक विस्तृत पुनः अभ्यावेदन सौंपा है, जिसमें वर्ष 1965-66 में बिना बन्दोबस्ती प्रक्रिया पूरी किए आरक्षित घोषित किए गए तराई पूर्वी वन प्रभाग के खमियां, लालकुआं और गौला ब्लॉकों की अधिसूचना रद्द करने तथा लंबित बन्दोबस्ती प्रक्रिया को शीघ्र पूर्ण करने की मांग की गई है।
समिति ने अपने ज्ञापन में कहा कि भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा 4 से 20 के अनुसार, किसी भी क्षेत्र को आरक्षित वन घोषित करने से पूर्व वहां निवास कर रहे लोगों के अधिकारों की जांच और संरक्षण के लिए “बन्दोबस्ती” की प्रक्रिया आवश्यक होती है। परंतु बिन्दुखत्ता क्षेत्र में यह प्रक्रिया कभी अपनाई ही नहीं गई। समिति ने आरोप लगाया कि वन विभाग ने 1966 में इन ब्लॉकों को सीधे आरक्षित घोषित कर दिया, जिससे हजारों मूल निवासी अतिक्रमणकारी घोषित कर दिए गए, जबकि वे दशकों से यहां निवास कर रहे हैं।


समिति ने कहा कि बिन्दुखत्ता क्षेत्र में लोग 1932 से पहले से बसासत कर रहे हैं। उस समय की सरकारी अनुमति से पशुपालक यहां चारण करते थे। इसके बाद वर्ष 1952 में प्राथमिक विद्यालय की स्थापना भी की गई, जो स्थायी बसावट का स्पष्ट प्रमाण है। समिति ने कहा कि इस क्षेत्र के लोगों ने खेती, पशुपालन और शिक्षा व्यवस्था को विकसित किया, लेकिन 1966 में बिना जांच के आरक्षित वन घोषित कर उनकी पीढ़ियों के अधिकार छीन लिए गए।
1992 और 1994 में शुरू हुई पर अधूरी रह गई बन्दोबस्ती
ज्ञापन में कहा गया कि वर्ष 1992 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व मंत्री के निर्देश पर बन्दोबस्ती की प्रक्रिया शुरू की गई थी। वर्ष 1994 में जिलाधिकारी नैनीताल ने 4231 हेक्टेयर भूमि का सर्वेक्षण कर रिपोर्ट राजस्व परिषद को भेजी थी, किन्तु अधिसूचना अब तक जारी नहीं हो पाई। इस कारण, दशकों से बसने वाले परिवार आज भी राजस्व ग्राम की मान्यता से वंचित हैं।


समिति ने बताया कि डीएफ़ओ तराई पूर्वी, हल्द्वानी द्वारा 30 जुलाई 2020 को शासन को भेजे गए प्रस्ताव में बिन्दुखत्ता की भूमि को अनारक्षित घोषित करने की सिफारिश की गई थी। इसके बावजूद शासन स्तर पर इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है। समिति ने कहा कि यह प्रशासनिक लापरवाही अब ग्रामीणों के अधिकारों में सबसे बड़ी बाधा बन गई है।
वन अधिकार अधिनियम के बाद भी अधूरे अधिकार
समिति ने कहा कि वर्ष 2006 में लागू वन अधिकार अधिनियम (FRA) की धारा 3(1)(ज) के तहत वन ग्रामों को राजस्व ग्राम में परिवर्तित करने का अधिकार जिला स्तरीय समिति को प्राप्त है। बिन्दुखत्ता के मामले में यह प्रक्रिया भी पूरी हो चुकी है — जिला स्तरीय समिति (DLC) ने 19 जून 2024 को राजस्व ग्राम प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी थी, पर उसकी अधिसूचना अभी तक शासन से जारी नहीं की गई है। समिति ने कहा कि इस देरी के कारण लगभग 80,000 बिन्दुखत्तावासी आज भी केंद्र सरकार, राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाएं व पंचायती राज जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।


वन अधिकार समिति के सचिव भुवन चन्द्र भट्ट ने कहा कि शासन के पास सभी अभिलेख और प्रस्ताव उपलब्ध हैं, फिर भी निर्णय में देरी की जा रही है। उन्होंने कहा —
यह केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक न्याय का प्रश्न है। हमारे पूर्वजों ने यहां बसासत की नींव रखी थी और आज भी हम अपनी ही भूमि पर अधिकार पाने के लिए संघर्षरत हैं।”
जिलाधिकारी नैनीताल को ज्ञापन सौंपते समय वन अधिकार समिति के संरक्षक बसंत बल्लभ पांडे, सचिव भुवन भट्ट, कैप्टन चंचल सिंह, उमेश भट्ट, एडवोकेट बलवंत सिंह बिष्ट और कमल पांडे उपस्थित रहे। प्रतिनिधिमंडल ने जिलाधिकारी से आग्रह किया कि वर्ष 1966 की अधिसूचना को रद्द कर, बिन्दुखत्ता की बंदोबस्ती प्रक्रिया को शीघ्र पूर्ण कराया जाए ताकि यहां के मूल निवासियों को उनका वैधानिक अधिकार मिल सके।

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