विकास में स्थानीय सहभागिता अनिवार्य : सोनम वांगचुक

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हिमालयी पारिस्थितिकी और जनभागीदारी पर बोले सोनम वांगचुक : देहरादून में सुंदरलाल बहुगुणा की पुण्यतिथि पर हुई संगोष्ठी में रखे विचार
स्थानीय समुदाय की भागीदारी के बिना नहीं हो सकता टिकाऊ विकास

देहरादून | विशेष संवाददाता
देश के प्रसिद्ध पर्यावरणविद, शिक्षाविद और नवाचार के प्रतीक सोनम वांगचुक आज देहरादून पहुंचे, जहां उन्होंने पर्यावरण चेतना के पुरोधा पद्मविभूषण स्व. सुंदरलाल बहुगुणा जी की चौथी पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित किया। कार्यक्रम का विषय था “बदलती पारिस्थितिकी में हिमालयी क्षेत्र में अनियोजित विकास”, जिसे लेकर उन्होंने गहरी चिंता और समाधान दोनों प्रस्तुत किए।

वांगचुक ने कहा, “स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र की असल समझ बाहर से आए उद्योगपतियों या नीति निर्धारकों से ज्यादा, यहां के निवासियों के पास होती है। ऐसे में उनके अनुभव और दृष्टिकोण के बिना विकास की योजनाएं अधूरी और विनाशकारी साबित होती हैं।” उन्होंने हिमालयी क्षेत्र में संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और पर्यावरणीय संतुलन के टूटते ढांचे पर चिंता जताई।

उन्होंने कहा कि पहाड़ी क्षेत्रों में विकास को लेकर अपनाई जा रही नीति में स्थानीय समुदाय की भागीदारी अनिवार्य होनी चाहिए। “हिमालय कोई रियल एस्टेट नहीं, यह जीवित सभ्यता है,” उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा।

लद्दाख आंदोलन का जिक्र
अपने संबोधन में वांगचुक ने लद्दाख में चल रहे आंदोलन की भी चर्चा की, जहां स्थानीय जनता छठी अनुसूची और राज्य के दर्जे की मांग कर रही है। उन्होंने बताया कि यह आंदोलन स्थानीय संसाधनों पर बाहरी दखल के विरोध और जनभागीदारी के पक्ष में है।

शहीद स्मारक पर भी हुए शामिल
देहरादून में वांगचुक की उपस्थिति को देखते हुए उत्तराखंड महिला मंच और उत्तराखंड इंसानियत मंच ने शहीद स्मारक कचहरी परिसर में एक अलग विचार गोष्ठी का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने शिरकत की और लोगों को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि जल, जंगल, जमीन और जीवन — इन सबका गहरा रिश्ता स्थानीयता से है। अगर कोई निर्णय इन चारों पर हो, तो उसमें स्थानीय समुदाय की आवाज जरूरी है।

सभी से एकजुट होने की अपील
वांगचुक ने युवाओं, सामाजिक संगठनों और नीति निर्माताओं से आह्वान किया कि वे हिमालयी क्षेत्र की पारिस्थितिकी को बचाने के लिए एकजुट हों। उन्होंने कहा, “पर्यावरण कोई वैकल्पिक विषय नहीं है, यह जीवन की अनिवार्यता है।”

कार्यक्रम में भारत ज्ञान विज्ञान समिति उत्तराखंड की ओर से भी उनका स्वागत किया गया। समिति के प्रतिनिधियों ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में वांगचुक के प्रयासों को अनुकरणीय बताया।

बहुगुणा जी को श्रद्धांजलि
कार्यक्रम की शुरुआत में उपस्थित जनों ने सुंदरलाल बहुगुणा को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। वक्ताओं ने बहुगुणा जी के चिपको आंदोलन, नर्मदा बचाओ अभियान और हिमालय रक्षा यात्रा जैसे ऐतिहासिक आंदोलनों को याद करते हुए कहा कि आज के समय में उनके विचार पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गए हैं।

ज्ञान विज्ञान समिति के प्रदेश अध्यक्ष विजय भट्ट जी के सहयोग से।


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