
कर्ज की बेड़ियों में जकड़े पिता ने ली अपनी जान, पाँच बेटियों के भविष्य पर छाया अंधेरा
लालकुआं से मुकेश कुमार की रिपोर्ट
लालकुआं के पास घोड़ानाला क्षेत्र के पश्चिमी राजीवनगर बंगाली कॉलोनी में गुरुवार की सुबह एक हृदयविदारक दृश्य सामने आया। 42 वर्षीय जीवन दास, जो स्थानीय पेपर मिल में ठेकेदारी के आधार पर श्रमिक के रूप में कार्यरत थे, ने सुबह लगभग 8 बजे अपने ही घर के एक कोने में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। एक संघर्षशील पिता, जो अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए दिन-रात मेहनत करता रहा, आखिरकार दुनिया की बेरुखी और कर्जदाताओं के दबाव के सामने टूट गया।

सूचना मिलते ही परिजन तुरंत उन्हें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लालकुआं ले गए, लेकिन डॉक्टर प्रेमलता शर्मा ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। अस्पताल का माहौल उस समय करुण क्रंदन से भर गया जब मृतक की पत्नी सप्तमी दास चीख-चीखकर कहने लगी — “अब इन पाँच बेटियों को मैं कैसे पालूंगी… मुझे भी उसके साथ जाने दो।” हर कोई निःशब्द था, आंखें नम थीं और दिल भारी।
जीवन दास की ज़िंदगी में सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब उन्होंने अपनी बड़ी बेटी का विवाह कुछ समय पूर्व पड़ोस में ही किया। सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने के चक्कर में वह कर्ज के दलदल में फंस गए। लोगों की उधारी वापसी की मांगें और तानों ने उन्हें अंदर ही अंदर तोड़ दिया। बेटी का हाथ पीले करते-करते पिता की सांसें उधारी की जंजीरों में थम गईं।
घटनास्थल पर पहुंचे कोतवाली प्रभारी निरीक्षक दिनेश सिंह फर्त्याल ने शव का पंचनामा भरवाकर उसे पोस्टमार्टम के लिए हल्द्वानी भेज दिया। उन्होंने पीड़ित परिवार को ढांढस बंधाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन उस मां की आंखों से बहते आंसू, उन मासूम बच्चियों की घबराई निगाहें और उस घर की वीरानी किसी को भी झकझोर देने के लिए काफी थी।
यह सिर्फ एक आत्महत्या नहीं थी, यह समाज की उस बेरहम मानसिकता का आईना था जिसमें एक गरीब बाप को बेटी की शादी के बाद भी चैन नहीं मिलता। यह एक सवाल है हम सबके सामने — क्या किसी की बेटी की शादी उसका अपराध बन गई थी?
अब यह पाँच बेटियों का परिवार समाज से इंसानियत की उम्मीद लगाए बैठा है… क्या हम उनका सहारा बनेंगे?