हमारी धरती सभी प्राणी जगत के लिए है लेकिन हमने अत्यधिक कूड़ा पैदा करने से इसकी प्रवृत्ति को बदल दिया है। आओ इस समस्या को दूर करने में हम सब विद्यार्थी मिलकर समाधान की ओर बढ़ें- डॉक्टर सौम्या प्रसाद

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मनुष्य द्वारा प्रकृति का दुरुपयोग कर अत्यधिक कूड़ा पैदा कर प्राणी जगत को संकट में डाल दिया है। आओ इसे पहचाने कैसे? और इसका समाधान मिलकर कैसे कर सकते हैं?विषयों पर नानकमत्ता पब्लिक स्कूल में पिछले दो दिनों से डॉ सौम्या प्रसाद और डॉ रिद्धिमा ने शिक्षार्कोथियों को विषय की उत्सुकता जगा कर स्कूल से बाहर पेड़ों के नीचे उक्त विषय पर विस्तृत चर्चा कर नया जोश भर प्राणी जगत के उत्थान में काम करने के लिए बच्चों के मनोबल को बढ़ाया।

आज सौम्या प्रसाद और रिद्धिमा जी के साथ सीखने की यात्रा का दूसरा दिन सेशंस, ऑब्जर्वेशंस और साइंटिफिक रिसर्च की चौंकाने वाली फाइंडिंग से भरा रहा। तराई की उमस भरी गर्मी में, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस, बेंगलुरु में रिसर्चर रही और जेएनयू के स्कूल ऑफ़ लाइफ़ साइंस की पूर्व प्रोफ़ेसर व एकोलॉजिस्ट डॉक्टर सौम्या प्रसाद जी ने वेस्ट पर हुए कल के सेशन को आगे बढ़ाया।

मानव की इस धरती के संसाधनों को दुरुपयोग कर अत्यधिक कूड़ा पैदा करने की प्रवृत्ति पर वे कहती हैं कि हमारी धरती की प्राणियों को सपोर्ट करने की जो क्षमता है उसे हम लोगों ने पार कर दिया है। दूसरी तरह से इसको समझें कि 8 अरब लोगों की बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिए धरती के संसाधन कम हो गए हैं।

अपने दिन की शुरुआत मैम कल दिए गए होमवर्क से करती हैं जिसमें छात्रों को यह पता लगाना था कि वह एक दिन में कितनी स्पिसीज को यूज करते हैं? मैम ने पूछा कि सुबह की चाय में आप लगभग कितनी प्लांट स्पिसीज़ प्रयोग करते हैं?इस पर छात्रों के अलग-अलग जवाब थे। मैम ने पत्ती, लौंग, इलायची, गन्ने से बनने वाली चीनी के उदाहरणों से बताया कि आप एक चाय बनाने में इतने अलग-अलग पेड़ों का प्रयोग करते हैं। इस बात से समझाने की कोशिश करी कि कैसे हम मनुष्य का जीवन इस धरती पर रहने वाले पेड़-पौधों और जानवरों पर निर्भर हैं।

हम अपनी बढ़ती उपभोक्तावादी प्रवृत्ति के कारण इन प्रजातियों के लिए ही खतरनाक हो गए हैं।मनुष्य के द्वारा किए जा रहे कूड़े के कारण इन प्रजातियों पर और भी नकारात्मक असर पड़ रहा है।अपनी प्रेजेंटेशंस के दौरान मैम ने दिखाया कि कैसे एक गाय के अंदर 140 किलोग्राम प्लास्टिक मिला है। यह प्लास्टिक जंगली जानवरों से लेकर समुद्री जानवरों में पाया जा रहा है।सौम्या मैम, अलग-अलग रिसर्चों के हवाले से और केमिस्ट्री के ज़रिए यह बताती हैं कि सबसे खतरनाक प्लास्टिक की बोतल हैं।

इनमें प्लास्टिक को लचीला बनाने के लिए एक केमिकल (बीपीए) मिलाया जाता है। जैसे-जैसे बोतल पुरानी होती है वह कलर फेड होता है, इसका मतलब है कि वह खतरनाक केमिकल आपके खाने में आ रहा है। लगभग सभी तरह के लचीले, मुलायम और पारदर्शी प्लास्टिक में यह केमिकल होता है जो मानव शरीर पर बहुत ही भयानक प्रभाव डाल रहा है। जितनी प्लास्टिक की बोतल कलरफुल होगी उसमें उतने ही ज़हरीले पदार्थ होंगे।

वह कहती हैं “There are no safe plastic when it comes to food or Drink.”उत्तर भारत की लगभग 70% आबादी के अंदर प्लास्टिक खाने और पीने वाली चीज़ों जैसे ब्रेड, चिप्स, मैगी, फास्ट फूड, पानी और जूस से जा रहा है। दुनिया के हर कोने से हमें यह सबूत मिल रहे हैं कि प्लास्टिक हमारे खून में आ चुका है। प्लास्टिक का असर मानव के डीएनए में भी पड़ रहा है।

BPA और EDC जैसे केमिकल जो कि प्लास्टिक में पाए जाते हैं हमारे शरीर में असर कर रहे हैं जिसके कारण ऑटिज़्म जैसे गंभीर डिसऑर्डर बहुत तेज़ी से बढ़ रहे हैं। अलग-अलग शोधों का हवाला देते हुए डॉक्टर सौम्या प्रसाद कहती हैं कि जहां 1970 के दशक में 70 में से एक बच्चा ऑटिज़्म का शिकार था अब लगभग हर 40 में से 1 बच्चे को ऑटिज़्म हो रहा है। ऑटिज़्म विकास से जुड़ी एक गंभीर समस्या है जो बातचीत करने और दूसरे लोगों से जुड़ने की क्षमता को कम कर देती है। ऑटिज़्म तंत्रिका तंत्र पर असर करता है और प्रभावित व्यक्ति की बुद्धि, भावनात्मक, सामाजिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर व्यापक रूप से असर करता है। इसका एक कारण प्लास्टिक का एक्सपोजर, पैक्ड फूड और खाने की गलत आदतें है। मिसकैरेज होना और पीरियड्स का रेगुलर न होना एक सामान्य परिघटना हो गई है ।

इसे पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम नाम से जाना जाता है। इस सिंड्रोम के कुछ कारण पर्यावरणीय हैं। इसमें प्लास्टिक भी एक कारण हैं। इसके लक्षणों में मासिक धर्म की अनियमितता, बालों का अधिक गिरना, मुहांसे और मोटापा हैं।देहरादून के अलग-अलग गाइनेकोलॉजिस्ट से बात कर मेडिकल रिसर्च और अपने अध्ययन के आधार पर डॉक्टर सौम्या प्लास्टिक का असर किशोर लड़कियों और युवतियों पर भी बताती हैं। प्लास्टिक में पाए जाने वाले केमिकल और फास्ट फूड से मासिक धर्म संबंधी समस्याएं जैसे अनियमित माहवारी, असामान्य मासिक धर्म, छोटा और हल्का मासिक धर्म, माहवारी के अलावा भी कभी-कभी खून का हल्का रिसाव, माहवारी न आना, या ज़्यादा रिसाव, मोटापा, वज़न अत्यधिक बढ़ना, अवसाद (डिप्रेशन) महिलाओं में पुरुषों जैसी अनुपयुक्त विशेषताएं होना, भी हैं।

इकोलॉजिस्ट डॉक्टर सौम्या बार-बार इस बात को दोहराती हैं कि प्लास्टिक में पाए जाने वाले केमिकल्स के कारण हमारे हारमोंस पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। लोगों में बढ़ रहा थाइरॉएड भी इसका प्रभाव है। थाइरॉएड हार्मोस के कारण अवसाद (Depression) जैसी समस्याएं भी बढ़ रही हैं। साथी रिद्धिमा चाय पीने वाले कागज़ के कप को दिखाते हुए बताती हैं कि कप के अंदर एक प्लास्टिक की लेयर है और जैसे ही आप इसमें चाय पीते हैं तो प्लास्टिक आपकी बॉडी के अंदर चला जाता है।मानव शरीर पर पड़ रहे प्लास्टिक के प्रभावों के मद्देनज़र उन्होंने नानकमत्ता के छात्रों से आग्रह किया कि आप अपने कैंपस को plastic-free बना सकते हैं। प्लास्टिक के थैले प्रयोग करने की जगह अपने कपड़े के बैग ले जाना एक बेहतर कदम हो सकता है। साथ ही अपनी ज़रूरतों को कम करना इसका एक विकल्प है। इससे हमारे स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर नहीं पड़ता है।

इस तरह से छात्रों के सवालों और शंकाओं के बीच आज के सेशन का पहला हिस्सा पूरा हुआ। दूसरे हिस्से में आठवीं और सातवीं क्लास के साथियों के साथ रिद्धिमा जी ने तितलियों पर बात की। तितलियों के हमारे इकोसिस्टम में रोल और उनके जीवन चक्र पर भी छात्रों के साथ दो तरफ़ा बातचीत हुई। दिन के आखिरी हिस्से में रिद्धिमा छात्रों से नानक सागर डैम के पास मिली जहां Wipro Earthian प्रोग्राम में शामिल हो रहे छात्रों के प्रोजेक्ट पर उन्हें फीडबैक दिया गया। आज के आखिरी सेशन में रिद्धिमा जी ने पीरियड्स पर समुदाय और स्कूल में अभियान चला रही सीनियर छात्राओं के साथ एक मीटिंग की जिसके सकारात्मक प्रभाव आपको स्कूल और नानकमत्ता के गांवों में जल्द ही देखने को मिलेंगे।

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