खेल खेल की भावनाओं से सही, अब तो खेल में बेमांटी- दिनेश कर्नाटक

author
1
0 minutes, 1 second Read
Spread the love

खेल में बेमांटी

खेल जरूरी है। न हो तो जीवन में नीरसता आ जाती है। खेल खेल भावना से हो तो सभी को खुशी होती है। कुछ लोग खेल को आनंद के लिए खेलते हैं, इसलिए नियम के अनुसार खेलना चाहते हैं। कुछ खेल को सिर्फ हार-जीत की नज़र से देखते हैं। जीतने को ही खेल समझते हैं, चाहे कैसे भी जीता जाए।

ऐसे बच्चे खेल शुरू होते ही झगड़ा, तनाव का माहौल बनाना शुरू कर देते हैं। ईमानदारी से खेल रहे लोगों व अंपायर को गलत साबित करने में लग जाते हैं। बेमांटी करने लगते हैं। खुद को पीड़ित, बेचारा और मौका मिलते ही दबंगई दिखाकर खेलते रहना चाहते हैं। इस से खेल गड़बड़ा जाता है। माहौल ख़राब हो जाता है।

कुछ लोग खेल को गंदा होता देखकर उससे किनारा कर लेते हैं। खेल को ही भला-बुरा कहने लगते हैं। बाकी बचे वे सब जिनको खेलने का बहुत मन होता है और इस उम्मीद में कि बैटिंग-बोलिंग न मिले फील्डिंग ही मिल जाए सोचकर दबंगों के सामने घुटने टेक देते हैं। मगर कुछ लोग जो जानते हैं खेल का मजा तभी है जब वो नियमों के अनुसार हो मैदान नहीं छोड़ते, लड़ते रहते हैं। ऐसे लोग ही खेल के सच्चे हितैषी व सच्चे खिलाड़ी होते हैं।

खेल को खेल भावना से खेलने की वकालत करने वालों को दबंग हर तरह से परेशान करते हैं। उनका मजाक उड़ाते हैं। बदनाम करते हैं। डराते हैं। लोग भी उन्हें ही गलत कहने लगते हैं। जो डरपोक होते हैं। खेल खेलने का लालच नहीं छोड़ पाते वे दबंग का समर्थन करते हैं।

इस तरह खेल बिगड़ जाता है। वही लोग खेल पाते हैं, जो दबंगों के साथ होते हैं। बाकी सभी को खेल से बाहर कर दिया जाता है। खेल खेल की तरह नहीं, दबंगों के अनुसार चलता है। इस नीरस, उबाऊ तथा झूठे खेल में किसी को आनंद नहीं आता, मगर खेल से प्रेम होने के कारण सभी इसे खेलते जाते हैं।

खेल के सच्चे होने का आडम्बर किया जाता है, मगर यह ज्यादा चल नहीं पाता। मैच फिक्सिंग नज़र आने लगती है। खेलने वालों को सच्चा खिलाड़ी समझने वाले लोग भी सारा घालमेल समझने लगते हैं। खेल पर अपनी आस्था और उसके खत्म होने के भय के कारण चुप रहते हैं।

खेल तब तक बिगड़ा रहता है, जब तक सही खेल चाहने वाले एकजुट नहीं होते। वे फ़िर से खेल को नियमानुसार चलाने की शुरुआत करते हैं। अब झगड़ा-कलह, डरने-डराने, आरोप-प्रत्यारोप, दबंगई खत्म हो जाती है। सभी को खेल का आनंद मिलने लगता है।

लेकिन खेल को आनंद व नियम के साथ खेलने वाले और खेल को हाईजैक करने वालों के बीच का यह द्वंद्व कभी खत्म नहीं होता। जैसे ही खेल को खेल भावना से खेलने वाले कमजोर पड़ते हैं या उनमें बेईमानी आ जाती है, खेल फिर से बिगड़ने लगता है।

लेखक प्रसिद्ध साहित्यकार व शिक्षाविद भी है।

Similar Posts

Comments

  1. avatar
    aeroslim says:

    Thank you for your response! I’m grateful for your willingness to engage in discussions. If there’s anything specific you’d like to explore or if you have any questions, please feel free to share them. Whether it’s about emerging trends in technology, recent breakthroughs in science, intriguing literary analyses, or any other topic, I’m here to assist you. Just let me know how I can be of help, and I’ll do my best to provide valuable insights and information!

Leave a Reply

%d bloggers like this: