
🔶 केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में सोने की परत का मामला विवादों में, आरटीआई से सनसनीखेज खुलासे
केदारनाथ मंदिर के पवित्र गर्भगृह में सोने की परत चढ़ाने को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। हेमंत सिंह गौनिया द्वारा दायर एक आरटीआई से सामने आए महत्वपूर्ण तथ्यों ने न केवल मंदिर समिति की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि पूरे मामले को लेकर पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग को भी बल दिया है।
आरटीआई में चार मुख्य बिंदुओं पर जानकारी मांगी गई थी—जिसमें सोने की मात्रा और नक्शा, दानदाता और आयकर छूट, सोने से पीतल में बदले जाने की आशंका, और संभावित चोरी या जांच की जानकारी शामिल थी।
प्राप्त जवाब के अनुसार, गर्भगृह में कुल 23.778 किलोग्राम शुद्ध सोना लगाए जाने की पुष्टि हुई है। इस कार्य में 801.300 किलोग्राम तांबे का उपयोग हुआ, जिसकी लागत ₹19,66,740/- बताई गई, जबकि सोने के काम की मजदूरी ₹19,92,947/- दर्शाई गई है। तीन अलग-अलग इनवॉइस के माध्यम से कुल लागत का विवरण प्रस्तुत किया गया, जिनमें से एक इनवॉइस की कुल राशि ₹44,13,347/- बताई गई, जिसमें से ₹40 लाख अग्रिम रूप से प्राप्त हुए थे।
याचिकाकर्ता ने गर्भगृह में दान देने वाले व्यक्तियों के नाम और आयकर छूट प्रमाण पत्र (80G) की स्थिति भी मांगी थी। जवाब में बताया गया कि मुंबई के श्री दिलीप कुमार वी. लक्खी के सौजन्य से यह कार्य महालक्ष्मी अम्बा ज्वैलर्स, नई दिल्ली द्वारा किया गया, लेकिन मंदिर समिति द्वारा किसी प्रकार का आयकर छूट प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया।
सबसे चौंकाने वाला सवाल यह था कि गर्भगृह की दीवारें अब पीतल जैसी क्यों दिखती हैं? इस पर मंदिर समिति ने स्पष्ट किया कि ऐसे किसी परिवर्तन के प्रमाण उनके अभिलेखों में मौजूद नहीं हैं, और न ही सोने की चोरी या गुम होने की कोई पुलिस रिपोर्ट या शासन की जांच उपलब्ध है।
हालाँकि याचिका में चांदी का उल्लेख नहीं था, लेकिन उत्तर से यह तथ्य भी सामने आया कि नई दिल्ली के श्री महेंद्र शर्मा (एमडी, ए.एस.एस. कन्युवशंस) द्वारा 230.620 किलोग्राम चांदी की प्लेटें भी गर्भगृह की दीवारों पर लगवाई गई थीं, जो श्री महेश गर्ग की उपस्थिति में संपन्न हुआ।
इस पूरे मामले ने मंदिर प्रशासन की पारदर्शिता, संपत्ति प्रबंधन और दान की जवाबदेही को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। यदि मंदिर में वाकई में करीब 24 किलो सोना और 1 टन तांबा लगाया गया है, तो फिर वर्तमान दीवारों का रंग और स्थिति पीतल जैसी क्यों प्रतीत होती है? इसके साथ ही यह भी विचारणीय है कि दानदाता को कोई कर छूट प्रमाणपत्र नहीं दिया गया, जिससे यह कार्य कहीं गोपनीय तरीके से तो नहीं हुआ?
यह आरटीआई एक उदाहरण है कि जनहित में दायर जानकारी याचिकाएं कैसे बड़े धार्मिक स्थलों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का माध्यम बन सकती हैं। यह प्रकरण अब आस्था बनाम प्रशासन की बहस को और गहरा कर सकता है।