6 अगस्त को वनाधिकार कानून और बिंदुखत्ता राजस्व गांव का सवाल विषय पर संगोष्ठी होगी-अखिल भारतीय किसान महासभा। जबकि वन अधिकार समिति द्वारा राजस्व गांव की प्रक्रिया के लिए जगह जगह जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है।

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अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रदेश उपाध्यक्ष और बिंदुखत्ता भूमि संघर्ष के प्रमुख नेता बहादुर सिंह जंगी ने बिंदुखत्ता को वनाधिकार कानून के आधार पर राजस्व गांव बनाने वाली भाजपा की बात पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए इसे बेईमानी भरी हास्यास्पद कोशिश करार दिया।

उन्होंने कहा कि, “भाजपा विधायक और उनके द्वारा बनाई समिति द्वारा बार बार कहा जा रहा है कि वनाधिकार कानून में संशोधन हो गया है इसलिए यह बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाने का रास्ता साफ कर सकता है लेकिन इस कानून में हुआ कोई भी संशोधन 75 साला या तीन पीढ़ी के रिकॉर्ड में कोई छूट नहीं देता, ऐसी कोई भी बात करना जनता के साथ बेईमानी है।”
उन्होंने बताया कि, “पूरे देश में और खासतौर पर आदिवासी बहुल झारखंड जैसे राज्यों के साथियों से व्यापक विमर्श के बाद यह और भी स्पष्ट हो गया है कि बिंदुखत्ता में वनाधिकार कानून को लेकर सत्ता पक्ष के लोग अपनी राजनीति को मजबूत करने के लिए और कुछ एनजीओ कर्मी वनाधिकर कानून के दावा फॉर्म भरने के अपने प्रोजेक्ट को बरकरार रखते के लिए जनता को गलत सलाह दे कर भ्रमित कर रहे हैं।”

जंगी ने कहा कि, “वनाधिकार कानून के तहत दावा धारकों को वन भूमि में एक जगह या घुमंतू रूप में 13 दिसंबर 2005 से 75 वर्ष अथवा तीन पीढ़ी पूर्व के वन भूमि पर बसासत के प्रमाण सौंपने होते हैं, यानी बिन्दुखत्ता वासियों को सन् 1930 से पूर्व उस भूमि के प्रमाण अपने दावा पत्रों की पुष्टि के लिए सौंपने होंगे। इस बारे में न तो विधायक कुछ बोल रहे हैं न ही उनकी बनाई समिति इस सवाल का कोई जवाब दे रही है। जबकि वनाधिकार कानून के तहत दावा करने का अर्थ है बिन्दुखत्ता वासियों के लिए भूमि से बेदखली का रास्ता खोलना।”

उन्होंने बताया कि, “बिंदुखत्ता की जनता के बीच भाजपा द्वारा फैलाए जा रहे वनाधिकार कानून के भ्रम को दूर करने के लिए 6 अगस्त को “वनाधिकार कानून और बिंदुखत्ता राजस्व गांव का सवाल” विषय पर संगोष्ठी की जायेगी।”

वहीं बिन्दुखत्ता वन अधिकार समिति के पदाधिकारी का कहना

जबकि वहीं बिन्दुखत्ता वन अधिकार समिति ने वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत दावे भरकर उपखंड समिति को सौंप दिया है समिति के अध्यक्ष समाजसेवी अर्जुन नाथ गोस्वामी का कहना है कि दिनांक 8/11/2013 को जनजाति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जारी पत्र के बिंदु संख्या 3. 8 में स्पष्ट निर्देश हैं कि 75 वर्षों से एक ही स्थान पर निवास करना अनिवार्य नहीं है। इसके अलावा जन जाति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जारी वन अधिकार अधिनियम पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न पुस्तक में भी स्पष्ट किया गया है कि अन्य परंपरागत वन निवासियों को 75 वर्षों से उस वन अथवा वन भूमि पर आश्रित होना चाहिए न कि 75 वर्षों से एक ही स्थान पर निवास करना अनिवार्य है। वन अधिकार अधिनियम में कहीं भी 75 वर्ष एक ही जगह पर होना नहीं लिखा है वही 2005 तक वन विभाग का गठन को ही मात्र 50- 60 साल हो रहे हैं।

श्री गोस्वामी ने कहा कि इस समिति का सम्बंध किसी भी राजनीतिक दल से नहीं है और न ही बिन्दुखत्ता को राजस्व गांव बनाने की प्रक्रिया राज्य अथवा केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई है। यह प्रक्रिया बिन्दुखत्ता के कुछ जागरूक समाजसेवी लोगों द्वारा बड़ा परिश्रम, लगन और ईमानदारी से शुरू किया है जिसे विधायक डॉ. मोहन सिंह बिष्ट अपने स्तर से भरपूर मदद कर रहे हैं। समिति का गठन राजनीतिक दलों के प्रभाव या दबाव में आकर नहीं बल्कि सदस्य की योग्यता, क्षमता, परिश्रम, ईमानदारी, समय की उपलब्धता और अधिनियम के अध्ययन के आधार पर किया गया है। जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के सामान्य कार्यकर्ता शामिल हैं।


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