*दिव्य है वह व्यक्ति*
दिव्य है वह व्यक्ति दिव्यांग कहकर पुकारते हैं
कमजोर है उसका वह अंग फिर भी विकलांग कह कर पुकारते हैं
जिंदगी में करना चाहता है वह भी एक मुकाम को हासिल
ऐसी कौन सी कठिनाई आई जिससे ना कर पा रहे हैं मुकाम को हासिल
कोमल गुलाब जैसा उसका मन फिर भी वहां कठिनाइयों को सह रहे है
लोग उसे खरी- खूंटी सुनते हैं फिर भी लड़ते हुए इस कठिनाइयों को शह रहे है
आई कैसी भी कठिनाई उन पर भूल जाते हैं सब व्यथा के कारण सब खुशियां रूट से जाती हैं
पर ना भूल पाते हैं सब कठिनाइयों को आंखों से देखना चाहते हैं इस दुनिया को
लेकिन क्या करें उसका जो कालीमां सी रात बैठी है उनके जीवन में भ्रमण करना चाहता है
ब्रह्मांड का भ्रमण करने को नहीं है उसके चरणों में जान क्यों
करते हो दूरव्यवहार उन पर , क्यों ?पहुंचने हो निंदा की बात उनके हृदय को उनसे ना बढ़ाते हो दोस्ती का हाथ, क्योंकि दुनिया में होगा बेज्जती का हाल ,
दूरी बनाते हो उनसे हाथ बढ़ाने से , मना करते हें उनसे सोचते हो वह लोग ना कर पाएंगे।
अपना काम दिखा देते हैं वह भी अनोखा काम, दिव्य है तो क्या हुआ !कमजोर ना समझो उनको
जग में जीत उनकी भी होगी जग में हार आपकी भी होगी
दिव्य है वह व्यक्ति !दिव्यांग कह कर पुकारते हैं,
कवि
गोकुलानन्द जोशी
विद्यार्थी चाइल्ड सेक्रेट सीनियर सेकंडरी विद्यालय बारहवीं का
पता बिंदुखत्ता लालकुआं नैनीताल
जैनकरास जेनोटी पालड़ी बागेश्वर।