समान नागरिक संहिता सिर्फ चुनावी लाभ- डॉ पाण्डे

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6 फरवरी
हल्द्वानी

  • उत्तराखण्ड विधानसभा में आज पेश समान नागरिक संहिता विधेयक चुनावी लाभ और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए
  • नागरिकता और समान नागरिक संहिता राज्य का नहीं केन्द्र सरकार का विषय
  • देश को एकरूपता की नहीं, समानता की जरूरत
  • यूसीसी का विरोध करने पर कार्यवाही करने का निर्देश अलोकतांत्रिक और दमनात्मक, इसे वापस लिया जाए

भाकपा माले के जिला सचिव डॉक्टर कैलाश पांडे ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा कि उत्तराखंड सरकार द्वारा रिपोर्ट मिलने के तत्काल बाद जिस तरह की जल्दबाजी में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को आज विधानसभा में पेश किया गया है, वह हड़बड़ी दर्शाती है कि बिना विचारे, सिर्फ चुनावी लाभ के लिए यूसीसी का हथकंडा आजमाया जा रहा है। कुल मिलाकर यूसीसी का उपयोग राज्य की भाजपा सरकार केवल अल्पसंख्यकों में भय पैदा करने और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए करना चाहती हैं।

संविधान में नीति-निर्देशक तत्वों के अंतर्गत अनुच्छेद 44 में पूरे देश के नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता की बात है, इसलिए किसी एक राज्य द्वारा अलग से नागरिक संहिता बनाना औचित्यहीन है। नागरिकता और समान नागरिक संहिता राज्य का नहीं केन्द्र सरकार का विषय है लेकिन भाजपा की धामी सरकार अपने नंबर बढ़ाने के लिए जबरन राज्य में यूसीसी पारित कराने पर आमादा है। इस पूरी प्रक्रिया में राज्य की भाजपा सरकार विधानसभा की परंपराओं का अनुपालन भी भूल गई है, आलम यह है कि विपक्ष के विधायकों को मांगने के बाद भी विधेयक की प्रति तक नहीं दी गई। विपक्ष के प्रति यह असंसदीय व्यवहार धामी सरकार के अहंकार को उजागर करता है।

असल में देश को एकरूपता की नहीं, समानता की जरूरत है और देश की विविधता और विभिन्नता को संरक्षित करने की आवश्यकता है।

राज्य के अपर पुलिस महानिदेशक, कानून व्यवस्था द्वारा यूसीसी का विरोध करने वालों को चिन्हित करने और उन पर कार्यवाही करने का निर्देश कतई अलोकतांत्रिक और दमनात्मक है, इसको तत्काल वापस लिया जाना चाहिए। वैचारिक विरोध करना और उसके लिए धरना प्रदर्शन करना देश के सभी नागरिकों का लोकतांत्रिक अधिकार है, इस पर रोक लगाना लोकतंत्र का हनन करना है।

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