उत्तराखंड: आयुष की प्रताड़ना ने आपातकाल के काले दिनों की दिलाई एक भयावह याद।

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उत्तराखंड: आयुष की प्रताड़ना ने आपातकाल के काले दिनों की दिलाई एक भयावह याद।


काशीपुर।
पुलिस की बर्बरता और सत्ता के दुरुपयोग की एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जहां न्यू सैनिक कॉलोनी निवासी आयुष रावत को मुकेश चावला, नीमा बोरा और अन्य पुलिसकर्मियों ने झूठे आपराधिक मामले में फंसाया, शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया और गलत तरीके से बंधक बनाया। रावत के अनुसार, 15 जुलाई 2024 को उसे प्रतापपुर चौकी ले जाया गया, जहां नीमा बोरा और अन्य पुलिसकर्मियों ने उसकी बेरहमी से पिटाई की। इसके बाद उसे कुंडेश्वरी चौकी ले जाया गया, जहां उसे फिर से शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। रावत का दावा है कि उसे बिना पढ़े ही खाली कागजों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया और उसे माओवादी और आतंकवादी कहा गया। उसके परिवार को उसके ठिकाने के बारे में नहीं बताया गया, जिससे उनका दुख और बढ़ गया। संजीवनी अस्पताल के एमडी मुकेश चावला ने रावत के खिलाफ मुख्यमंत्री के बारे में आपत्तिजनक सामग्री मीम इंस्टाग्राम पर पोस्ट करने के आरोप में फर्जी एफआईआर दर्ज कराई थी। इधर आयुष रावत का दावा है कि यह पैसे ऐंठने और उन्हें बदनाम करने के इरादे से किया गया था। झूठे आरोपों से रावत को भारी मानसिक पीड़ा हुई है और उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है। रावत ने बीएनएस अधिनियम, 2023 की प्रासंगिक धाराओं के तहत क्रॉस एफआईआर आज दर्जनों लोगो के साथ कोतवाली पहुंच दर्ज की है, जिसमें भारतीय न्याय सहिता के निम्न धाराएं शामिल है :

  • धारा 144 (गलत सूचना, किसी अन्य व्यक्ति को चोट पहुंचाने के लिए लोक सेवक को अपनी वैध शक्ति का उपयोग करने के लिए प्रेरित करने के इरादे से)
  • धारा 153 (चोट पहुंचाने के इरादे से अपराध का झूठा आरोप)
  • धारा 203 (मानहानि के लिए सजा)
  • धारा 251 (किसी व्यक्ति को चोट पहुंचाने के इरादे से लोक सेवक द्वारा कानून की अवहेलना)
  • धारा 252 (किसी व्यक्ति को सजा से बचाने या संपत्ति को जब्त होने से बचाने के इरादे से लोक सेवक द्वारा गलत रिकॉर्ड या लेखन तैयार करना)
  • धारा 330 (स्वीकारोक्ति या जानकारी प्राप्त करने के लिए स्वेच्छा से चोट पहुंचाना)
  • धारा 331 (स्वीकारोक्ति या जानकारी प्राप्त करने के लिए स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुंचाना)
  • धारा 348 (स्वीकारोक्ति या जानकारी प्राप्त करने के लिए गलत तरीके से बंधक बनाना)
  • धारा 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति की डिलीवरी के लिए प्रेरित करना)
  • धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना)
  • धारा 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा)
  • धारा 509 (किसी व्यक्ति की विनम्रता का अपमान करने के इरादे से शब्द, इशारा या कार्य)

इसके अलावा, रावत ने आरोप लगाया है कि घटना में शामिल पुलिसकर्मी आपराधिक साजिश (धारा 120बी), लोक सेवकों का रूप धारण करना (धारा 170), झूठे साक्ष्य देना या गढ़ना (धारा 195), झूठे साक्ष्य का उपयोग करना (धारा 196), और जालसाजी (धारा 467, 468, 469) के दोषी हैं।

इस घटना ने पुलिस की बर्बरता, सत्ता के दुरुपयोग और नागरिकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएँ पैदा की हैं। रावत ने घटना की तत्काल कार्रवाई और निष्पक्ष जाँच की माँग की है। उन्होंने अपनी सुरक्षा और भलाई के लिए डरते हुए आरोपी से सुरक्षा की भी माँग की है।

बताते चले की मुख्यमंत्री धामी का व्यंग्यात्मक मीम बनाने के लिए काशीपुर निवासी आयुष रावत को हाल ही में प्रताड़ित किया गया और हिरासत में लिया गया, जिससे पूरे देश में हड़कंप मच गया है। यह घटना इंदिरा गांधी के शासन के दौरान आपातकाल के काले दिनों से एक अजीब तरह की समानता रखती है, जब असहमति को कुचल दिया गया था और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक दूर का सपना थी।

आयुष की पीड़ा तब शुरू हुई जब उसने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम पर एक मीम पोस्ट किया जिसमे मुख्यमंत्री जी यह कहते हुए दिखे “आज कुछ काम धाम नही था सोचा आपको बता दू. ” जिसे भाजपा सदस्यों और मुख्यमंत्री के करीबी रिश्तेदारों ने “आपत्तिजनक” और “अपमानजनक” माना। इसके बाद आयुष को हिरासत में लिया गया, पीटा गया और खाली कागजों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया। उसकी माँ सहित उसके परिवार को लगातार परेशान किया गया और धमकाया गया।
इस घटना ने व्यापक आक्रोश पैदा कर दिया है, कई लोगों ने आपातकाल के दौर से इसकी तुलना की है, जब राजनीतिक विरोधियों और असहमति की आवाज़ों को क्रूर बल के ज़रिए चुप करा दिया गया था। कोतवाली पहुँचे समाजसेवी व उत्तराखण्ड युवा एकता मंच के संयोजक पियूष जोशी ने कहा, “यह उत्पीड़न और धमकी का एक स्पष्ट मामला है, जो आपातकाल के दौर की याद दिलाता है। सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने और असहमति की आवाज़ों को चुप कराने की कोशिश कर रही है।”

उत्तराखंड बेरोजगार संघ के कुमाऊ संयोजक भूपेंद्र कोरंगा ने कहा, “मीम बनाना कोई अपराध नहीं है। हम प्रतिशोध के डर के बिना खुद को अभिव्यक्त करने के अपने अधिकार के लिए लड़ते रहेंगे।” आयुष रावत के साथ पुलिस द्वारा किया गया क्रूर उत्पीड़न सत्ता के दुरुपयोग की एक भयावह कहानी है।
उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया। यह घटना राज्य में पुलिस की भूमिका और असहमति की आवाज़ों को चुप कराने के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने की उनकी इच्छा पर गंभीर सवाल उठाती है। आयुष रावत के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर एक मनगढ़ंत मामला है, जिसका उद्देश्य उसे चुप कराना और दूसरों को सरकार के खिलाफ बोलने से डराना है। एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि आयुष ने मुख्यमंत्री के बारे में “आपत्तिजनक” सामग्री पोस्ट की, लेकिन जिस सामग्री पर सवाल उठाया जा रहा है, वह एक व्यंग्यात्मक मीम है जो हिंसा या घृणा को नहीं भड़काती है। उत्तराखंड सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए कि जिम्मेदार लोगों को सजा मिले और आयुष को न्याय मिले। यह घटना कानून प्रवर्तन में जवाबदेही और पारदर्शिता की आवश्यकता की एक कठोर याद दिलाती है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सत्ता में बैठे लोग अपने अधिकार का दुरुपयोग न करें और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की जाए।
इस दौरान उत्तराखण्ड युवा एकता मंच संयोजक पियूष जोशी,
उत्तराखण्ड बेरोजगार संघ कुमाऊ संयोजक भूपेंद्र कोरंगा, देव सेना संगठन प्रदेश उपाध्यक्ष सुरज भारद्वाज ,शम्भू लखेड़ा,समाजसेविका कुसुमलता बौदाई,नरेश सती,मनीष जोशी,त्रिलोक सिंह नेगी,जयशुभाष रावत,मुकेश चंद्र जोशी, अजीज भण्डारी,
संधीता देवी,अरविन्द रावत,सावती देवी,रवीन्द्र सिंह रावत,कमला देवी,राधा देवि,नीरज मंडारी, अन्जू देवी,रोहित शवंत,सतपाल सिंह रावत,लक्की थापा,मोहनसिंह,
आदि दर्जनों लोग मौजूद रहे।

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