एरीज और दून विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित भारतीय एरोसोल विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संघ (आईएएसटीए) सम्मेलन 2024 का आयोजन
नैनीताल स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज), जो कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के तहत एक स्वायत्त संस्थान है, और दून विश्वविद्यालय, देहरादून संयुक्त रूप से 17-20 दिसंबर, 2024 के दौरान दून विश्वविद्यालय परिसर में भारतीय एरोसोल विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संघ (आईएएसटीए) सम्मेलन 2024 का आयोजन कर रहे हैं।
एरीज खगोल विज्ञान व खगोल भौतिकी और वायुमंडलीय विज्ञान में विशेषज्ञता रखता है। दून विश्वविद्यालय स्नातक, स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट स्तर पर बहु-विषयक शैक्षणिक कार्यक्रमों में शिक्षण और अनुसंधान में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है।
एरोसोल हवा में निलंबित अतिसूक्ष्म ठोस कणों या तरल बूंदों का मिश्रण है। कोहरा, धूल, इत्र, धुआँ, दमा के इन्हेलर द्वारा दी जाने वाली दवा आदि एरोसोल के कुछ रोजमर्रा के उदाहरण हैं। वायुमंडलीय एरोसोल मौसम और जलवायु अध्ययन के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए, सर्दियों में हम अपने शहरों में गंभीर प्रदूषण का सामना करते हैं, खासकर उत्तर भारतीय क्षेत्र में। यह प्रदूषण एरोसोल का एक और उदाहरण है।
इसलिए, एरोसोल अनुसंधान, अनुप्रयोग और वैज्ञानिक विचारों का आदान-प्रदान वर्तमान समय में अत्यंत महत्वपूर्ण है। आईएएसटीए वैज्ञानिकों और अभियंताओं के लिए एक पेशेवर संगठन है जो सम्मेलनों, तकनीकी बैठकों, व्याख्यानों और प्रकाशनों के माध्यम से एरोसोल अनुसंधान को आगे बढ़ाने का प्रयास करता है। इसने भारत और विदेशों में संस्थानों और अन्य समान संघों के बीच सक्रिय संपर्क बनाए रखा है।
आईएएसटीए 2024 सम्मेलन का औपचारिक उद्घाटन 17 दिसंबर को मुख्य अतिथि श्री मुन्ना सिंह चौहान, विधायक, उत्तराखंड द्वारा विशिष्ट अतिथियों डॉ. आर. पी. सिंह, निदेशक, भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (आईआईआरएस), देहरादून और डॉ. मनीष नजा, निदेशक, एरीज की उपस्थिति में किया गया। दून विश्वविद्यालय की कुलपति, प्रो. सुरेखा डंगवाल ने सम्मेलन में वैज्ञानिकों और औद्योगिन क्षेत्र के बीच सहयोग का स्वागत किया और अपने संबोधन में इसके महत्व पर प्रकाश डाला। डॉ. आर. पी. सिंह, निदेशक, आईआईआरएस ने बताया कि कैसे प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए एरोसोल का मापन और निगरानी आवश्यक है।
मुख्य अतिथि श्री चौहान जी ने इस बात पर जोर दिया कि यह सम्मेलन समय की मांग है क्योंकि इस हिमालयी क्षेत्र, विशेष रूप से तलहटी क्षेत्र, में एरोसोल लगातार उच्च स्तर को पार कर रहे हैं और इसके हिमनदों, जलवायु चक्रों, पारिस्थितिकी और समाज को प्रभावित कर रहे हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि सम्मेलन के परिणामस्वरूप सिफारिश के रूप में कार्य बिंदु बनाए जाएँ, जो नीति निर्माताओं को प्रदूषण को कम करने के लिए निर्णय लेने में सहायता करेंगे। एरीज के निदेशक डॉ. मनीष नजा ने सम्मेलन के वैज्ञानिक कार्यक्रम की सराहना की और प्रतिभागियों को सम्मेलन के दौरान चर्चा के लिए शुभकामनाएँ दीं। मियामी विश्वविद्यालय, अमेरिका के प्रो. प्रतीम बिस्वास ने एरोसोल विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर मुख्य भाषण दिया और ऐतिहासिक पहलुओं से लेकर भविष्य में अवसरों तक का अवलोकन प्रस्तुत किया। इस सम्मेलन में देश और विदेश के 250 से अधिक शोधकर्ता भाग ले रहे हैं।