
हल्द्वानी। “थोड़े से संयम और समझदारी से लाखों पौधों को बेमौत मरने से बचाया जा सकता है।” यह कहना है पर्यावरणविद् और पूर्व जिला आयुर्वेदिक अधिकारी डॉ. आशुतोष पन्त का, जिन्होंने विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर पौधरोपण की वर्तमान शैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
डॉ. पन्त का कहना है कि हर वर्ष 5 जून को देशभर में बड़े पैमाने पर पौधरोपण किया जाता है, परंतु उनमें से 95% पौधे सार्वजनिक स्थलों पर लगाए जाने के कारण उचित देखभाल के अभाव में कुछ ही दिनों में सूख जाते हैं। “पौधरोपण आजकल केवल फोटो खिंचवाने और सोशल मीडिया पोस्ट तक सीमित रह गया है,” उन्होंने कहा।

उन्होंने यह भी बताया कि जून के महीने में देश के अधिकांश हिस्सों में भीषण गर्मी पड़ती है, ऐसे में पौधे लगाना एक तरह से उनकी ‘हत्या’ जैसा है। “जून में तापमान 40 से 45 डिग्री तक रहता है, जबकि मानसून के आने के बाद ही मिट्टी और मौसम पौधों के अनुकूल होता है,” डॉ. पन्त ने समझाया।
हरीतिमा के लिए हरेला श्रेष्ठ अवसर
डॉ. पन्त ने सुझाया कि हरेला, हरियाली तीज जैसे पारंपरिक त्योहारों को ही वृक्षारोपण का उपयुक्त समय माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने यह तय कर दिया था कि 15 जुलाई के आसपास जब तापमान सामान्य हो जाता है और बारिश निरंतर होती है, तब लगाए गए पौधे अधिक सुरक्षित रहते हैं और अच्छी वृद्धि करते हैं।
विश्व पर्यावरण दिवस पर वैकल्पिक कार्यक्रमों की सलाह
डॉ. पन्त ने 5 जून को जल संरक्षण, पॉलिथीन उन्मूलन, वन अग्नि सुरक्षा और बीजों से पौधे तैयार करने जैसी गतिविधियों पर जोर देने की बात कही। “पर्यावरण की रक्षा केवल पौधे लगाकर नहीं होती, अपितु उन्हें बचाकर और प्रकृति के अन्य अंगों की रक्षा करके ही होती है,” उन्होंने कहा।
नि:शुल्क पौधे उपलब्ध कराएंगे
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी डॉ. पन्त द्वारा जुलाई में नि:शुल्क पौधे उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाएगा। इच्छुक लोग उनसे संपर्क कर पौधे प्राप्त कर सकते हैं।
स्रोत:
प्रेस नोट, डॉ. आशुतोष पन्त – पूर्व जिला आयुर्वेदिक अधिकारी एवं पर्यावरणविद, हल्द्वानी।