
गर्भवती महिलाओं के अधिकारों की अनदेखी पर उच्च न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग, हल्दूचौड़ CHC की बदहाल स्थिति को लेकर जनहित याचिका दाखिल
नैनीताल। हल्दूचौड़, जिला नैनीताल स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) की बदहाल स्थिति और गर्भवती महिलाओं को स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित किए जाने को लेकर उत्तराखंड उच्च न्यायालय, नैनीताल में एक महत्वपूर्ण जनहित याचिका दाखिल की गई है। याचिका रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से माननीय मुख्य न्यायाधीश को संबोधित है, जिसमें स्वतः संज्ञान हस्तक्षेप की मांग की गई है।

याचिकाकर्ताओं – सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गोविंद बल्लभ भट्ट, सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत गोनिया, नगर पंचायत लालकुआं अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह लोटनी और व्यापार संघ अध्यक्ष हल्दूचौड़ ने न्यायालय का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया है कि ₹789.06 लाख की भारी धनराशि व्यय होने के बावजूद हल्दूचौड़ CHC अब तक गैर-कार्यशील है।
इस निष्क्रियता के कारण क्षेत्र की अनेक गर्भवती महिलाओं को इलाज के अभाव में बिना सुविधा के प्रसव कराने को मजबूर होना पड़ा। कुछ महिलाओं को तो अस्पताल के द्वार पर ही प्रसव करना पड़ा, जो उनकी गरिमा और जीवन के अधिकार का खुला उल्लंघन है।
याचिका में यह भी उल्लेख है कि इस विषय पर पहले से ही WP(PIL) संख्या 108/2023 विचाराधीन है, परंतु राज्य सरकार के महाधिवक्ता द्वारा बार-बार स्थगन और टालमटोल के कारण न्याय में अत्यधिक देरी हो रही है। याचिकाकर्ताओं ने इसे राजनीतिक हस्तक्षेप और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग को छिपाने का प्रयास बताया है।
याचिका के साथ सैकड़ों गर्भवती महिलाओं की लाभार्थी सूची भी संलग्न की गई है, जिसमें नाम, स्थान, मोबाइल नंबर और हस्ताक्षर सहित सभी विवरण हैं। आशा कार्यकर्ताओं द्वारा संकलित यह सूची, याचिका के साथ प्रमाण स्वरूप दी गई है।
यह जनहित याचिका पत्र गोविंद बल्लभ भट्ट, हेमंत गोनिया, सुरेंद्र सिंह लोटनी और व्यापार मंडल अध्यक्ष हल्दूचौड़ द्वारा सामूहिक हस्ताक्षर कर प्रस्तुत की गई है।
याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय से निम्नलिखित मांगें की हैं:
- हल्दूचौड़ CHC की दुर्दशा पर माननीय न्यायालय स्वतः संज्ञान ले।
- राज्य सरकार को निर्देशित किया जाए कि वह स्वास्थ्य केंद्र को आवश्यक चिकित्सा उपकरणों और स्टाफ के साथ शीघ्र चालू करे।
- संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गर्भवती महिलाओं के गरिमा के साथ जीवन के अधिकार की रक्षा सुनिश्चित की जाए।
यह याचिका उत्तराखंड में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की वास्तविक स्थिति और प्रशासनिक निष्क्रियता पर गंभीर सवाल खड़े करती है। अब देखना यह होगा कि माननीय उच्च न्यायालय इस संवेदनशील विषय पर क्या रुख अपनाता है।