भारत में जन जागरूकता की कमी के कारण अंगदान और रक्तदान बेहद कम मात्रा में होता है। जिसके कारण कई रोगों से ग्रसित लोगों को अपनी जिंदगी से हाथ धोना पड़ता है। अगर लोग रक्तदान और अंगदान के लिए स्वैच्छिक तौर पर सामने आएं तो हर वर्ष हजारों जिंदगियों को बचाया जा सकता है।
यह बात चिकित्सा विशेषज्ञों ने सुशीला तिवारी अस्पताल में विश्व रक्तदान दिवस के अवसर पर लेखिका रीता खनका रौतेला की स्मृति में आयोजित एक सेमिनार में कहीं। उत्तराखंड के पूर्व चिकित्सा स्वास्थ्य निदेशक डॉक्टर एलएम उप्रेती ने रक्तदान के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सन् 1900 में कॉल लैंडस्टेनर नामक चिकित्सक के द्वारा अलग-अलग रक्त समूह की खोज की गई और यह ए,बी, एबी और ओ रक्त समूहों में बांटा गया। इसके बाद मरीजों को रक्त चढ़ाने के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन आया।
सन् 1930 में उन्हें रक्त समूह की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार भी दिया गया। डॉक्टर कॉर्ल ने ही 1937 में आरएच रक्त समूह की खोज की। उनके सम्मान में उनके जन्मदिन 14 जून को विश्व रक्तदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है। जिसमें स्वैच्छिक रक्तदान के लिए अनेक कार्यक्रम किए जाते हैं। डॉ उप्रेती ने रक्तदान से अंगदान की ओर जागरूकता की मुहिम प्रारंभ करने की घोषणा भी की।
जिला चिकित्सा अधिकारी डॉ भागीरथी जोशी ने कहा कि अगर हम अपना कोई भी अंग दान करते हैं तो उससे बीमार व्यक्ति को नया जीवन मिल जाता है। कई मरीज ऐसे होते हैं जो अंगदान ना होने के कारण असमय ही मौत के मुंह में चले जाते हैं। हमें अंगदान को लेकर जन-जन में जागरूकता का फैलाव करना होगा। वरिष्ठ किडनी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एचएस भंडारी ने कहां की किडनी में 90% प्रत्यारोपण सफल होता है। लेकिन जितनी संख्या में किडनी के रोगियों को इसकी आवश्यकता है उसके लगभग 10% ही किडनी प्रत्यारोपण के लिए प्राप्त होते हैं।
अन्य रोगियों को अपना जीवन बचाने के लिए डायलिसिस पर निर्भर रहना होता है। सुशीला तिवारी अस्पताल की नेत्र विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर पल्लवी मिश्रा ने लोगों को नेत्रदान के लिए आगे आने की अपील की। उन्होंने कहा कि एक कॉर्निया से हम चार लोगों की आंखों को रोशनी दे सकते हैं। उन्होंने कहा की मौत के बाद 5 घंटे के अंदर अंदर मृत व्यक्ति के आंखों को कार्निया निकल जानी चाहिए। डॉ पल्लवी ने कहा कार्निया को सुरक्षित रखने के लिए पंखा और एसी बंद कर देना चाहिए। साथ ही अगर मृत शरीर में आंखें खुली हुई हैं तो उन्हें भी बंद कर दें और आंखों को गीले कपड़े से ढक देना चाहिए, ताकि डॉक्टरों की टीम आने से पहले कॉर्निया खराब ना हो। ब्लड बैंक की विभागाध्यक्ष डॉ सलोनी उपाध्याय ने स्वैच्छिक रक्तदान के लिए लोगों से आगे आने की अपील की। उन्होंने कहा कि स्वैच्छिक रक्तदान से दुर्घटनाओं में गंभीर तौर पर घायल मरीजों की जान बचाई जाती है।
उन्होंने एक अत्याधुनिक एंबुलेंस की आवश्यकता बताई और कहा कि इस एंबुलेंस में ओ ग्रुप का ब्लड हमेशा रहना चाहिए, ताकि वह दुर्घटना स्थल पर पहुंचकर घायल को वहीं रक्त चढ़ा सके। उसके बाद घायल व्यक्ति को सुरक्षित अस्पताल लाया जा सके। उन्होंने कहा कि ऐसा करने से सैकड़ों लोगों को बचाया जा सकता है।
दिवंगत लेखिका रीता खनका रौतेला के पति वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन रौतेला ने देहदान की पूरी प्रक्रिया को उपस्थित लोगों के सामने रखा और बताया कि देह दान करना भावनात्मक और धार्मिक तौर पर व्यक्ति को उलझा देता है। जिसकी वजह से लोग चाह कर भी देहदान नहीं कर पाते। रौतेला ने कहा कि देह दान करना आने वाली पीढ़ी के स्वास्थ्य के लिए एक कारगर पहल हो सकती है, क्योंकि मेडिकल कॉलेज में छात्र देहदान के कारण ही शोध और कई बीमारियों पर नियंत्रण पाने का रास्ता खोज पाते हैं।
सेमिनार का संचालन क्रिएटिव उत्तराखंड के हेम पंत ने किया। इस अवसर पर दयाल पांडे, ध्यान सिंह रौतेला, सुनीता भास्कर, उत्तम सिंह मेहता, प्रोफ़ेसर प्रभात उप्रेती, हर्षिता रौतेला बुलबुल, पीयूष जोशी, हेम खोलिया, रिस्की पाठक, लीलाधर पांडे एल एम जोशी, गिरीश चंद्र जोशी, सीएम उप्रेती, नवेंदु मठपाल, कैलाश पांडे, नरेंद्र बंगारी, डीसी उप्रेती, अमित खोलिया, डॉ विकास अग्रवाल, चंद्रशेखर डालाकोटी, मुकेश कुमार कोहली, जयश्री भंडारी, लता पंत, गोविंद पांडे, हरगोविंद सिंह, दीपक चंद्र, राजेश आदि अनेक लोग मौजूद रहे। इस अवसर पर डॉक्टर एलएम उप्रेती की पुस्तिका “रक्तदान से अंगदान की ओर” का लोकार्पण भी किया गया। सेमिनार के अंत में 12 लोगों ने नेत्रदान, 10 लोगों ने अंगदान के संकल्प पत्र भरे और 10 लोगों ने स्वैच्छिक तौर पर ब्लड बैंक में रक्तदान किया।