प्राचीन शिक्षा सभ्यता के व्यक्तित्व निर्माण में योगदान संबंधित विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी

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रुद्रपुर। सरदार भगत सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय रुद्रपुर एवं आचार्य अकादमी की ओर से शुक्रवार को प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली एवं व्यक्तित्व विकास में सभ्यता विषय पर बहुविषयक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। दो दिवसीय आभासीय संगोष्ठी का उद्घाटन महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. डी सी पंत ने किया। इस दौरान प्राचार्य द्वारा बताया गया की भारतीय ज्ञान परम्परा वाह्य सांसारिक चिंतन से आत्मावलोकन की यात्रा की ओर प्रशस्त करने की एक महत्वपूर्ण सभ्यता थी और भारतीय ज्ञान परम्परा में भौतिकवादी उपलब्धियों के स्थान पर आत्मसुख, आत्मसंतुष्टि एवं आत्मपरिष्करण पर हमेशा से जोर दिया गया है। जो कि व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भारतीय ज्ञान परम्परा विश्वविजय का ज्ञान प्रदान नही करती है बल्कि आत्मविजय की शिक्षा देती है। भारतीय ज्ञान परम्परा एक ऐसे समाज के निर्माण पर चिंतन करती है जिसमें समाज के अंतिम पायदान पर स्थित प्रत्येक व्यक्ति को राजनीति, कला, संस्कृति, साहित्य एवं प्रतिष्ठा में अपना सर्वोत्कृष्ठ योगदान देने का समान अवसर प्राप्त हो सके।

इसके बाद सेमिनार संयोजक डॉ सुरेंद्र विक्रम सिंह पडियार ने सेमिनार की प्रस्तावना रखते हुए उन्होंने सेमिनार का शीर्षक प्राचीन शिक्षा सभ्यता का व्यक्तित्व निर्माण में योगदान कितना महत्वपूर्ण है इस से सबको अवगत करवाने के साथ ही राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक के भीतर अपने प्राचीन शिक्षा संस्कृति को लेकर किस प्रकार सक्रिय जागरूकता लाई जाए इस पर बात रखी। उद्घाटन सत्र में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्रो. एनएस कामिल ने पारंपरिक और वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर उद्बोधन दिया। उन्होंने कहा कि जो मन, बुद्धि और चित्त को पवित्र करे वही असल मायनों में शिक्षा है।

उन्होंने कहा कि आधुनिकता की दौड़ ने हमें अपनी प्राचीन परंपराओं और संस्कारों से दूर कर दिया है। ऐसा हमें उन्नति भले ही दिलाए लेकिन यह तब तक अधूरा है जब तक हम अपने मूल और संस्कारों से न जुड़ें। प्रो. कामिल ने कहा कि भारतीय ज्ञान और विज्ञान समृद्ध रहा है। हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति एक व्यक्ति को असल मायनों में इंसान बनाने वाली रही है। इसमें संस्कार, परोपकार और शालीनता की शिक्षा दी जाती थी। मगर वर्तमान में वर्तमान में व्यावसायिक होती शिक्षा में इन सभी तत्वों को ह्रास हुआ है। साथ ही गुरु शिष्य परंपरा भी खत्म होती दिखती है। लेकिन नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से फिर पारंपरिक शिक्षा पद्धति से युवाओं को जोड़ने की पहल हुई है। यह काफी कारगर होगी। दूसरे सत्र में प्रो. अमर नाथ प्रसाद ने कहा कि ज्ञान के साथ विद्यार्थियों का व्यक्तित्व विकास होना भी जरूरी है। उन्हें नैतिक मूल्यों की जानकारी दी जानी भी जरूरी है। बेहतर ज्ञान के लिए शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन किया जाना चाहिए। प्रो. प्रसाद ने कहा कि एनईपी 2020 में इन सभी विषयों का समावेश दिखता है। इससे भारत फिर से विश्वगुरु बनने की दिशा में आगे बढ़ेगा।

इतना ही नहीं भारतीय प्राचीन शिक्षा पद्धति के अनुसार अध्ययन करते हुए युवा कई कीर्तिमान स्थापित कर सकेंगे। सेमिनार के तीसरे सत्र में प्रो.हरदीप सिंह ने भारतीय ज्ञान परंपरा के विकास से संबंध में अपना विचार सेमिनार में प्रस्तुत कर रहे सभी लोगो के सामने रखे। उन्होंने भारत एक सोने की चिड़िया से संबोधित करते हुए वर्तमान में भारतीय परंपरा पर शैली में हो रहे बदलाव की स्थिति को साझा किया। साथ ही प्रकृति और मनुष्य की आपसी समाज का विश्लेषण वेदों की ओर लौटो सभ्यता का आवाहन अध्यापकों और विद्यार्थियों का वर्तमान तकनीकी युग में संबंध मनुष्य को प्रकृति का अनुसरण अपने संस्कारों से करना होगा ये सुझाव दिया।

सेमिनार में देश के कोने कोने से कई प्रबुद्ध जन और शोधार्थी जुड़े और अंतिम सत्र में डॉ रंजना रावत, डॉ इरा सिंह, डॉ वंदना, सुरेश कुमार, क्षितिज भट्ट, आरजू अफरोज, और डॉ सारिका कंजलिया के द्वारा अपने अपने शोध पत्रों को प्रस्तुत किया गया, सेमिनार के अलग अलग सत्रों में डॉ आशीष कुमार गुप्ता, डॉ पल्लवी मालिक , डॉ बिंदिया रानी सिंह और डॉ गुंजन माथुर ने संचालन किया साथ ही अंतिम सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ आशीष कुमार ने सभी शोधार्थियों के शोध की समीक्षा कर उन्हे सुझाव दिए और डॉ मुकेश चंद्र के द्वारा प्राचीन शिक्षा पद्धति और आधुनिक शिक्षा पर अपने विचार रख कर किस और शोध किया जा सकता है सभी शोधार्थियों को बताया।

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