तुम्हारे बिना वीरान है पहाड़ – क्या तुम लौटोगे

Spread the love


“देवभूमि की सिसकती पुकार: जाग उठो हे उत्तराखंडी!”
(श्याम मठपाल की चेतावनी बनकर गूंजती एक मार्मिक कविता)


उत्तराखंड — देवभूमि, तपोभूमि और संस्कृति की धरोहर — आज़ विकास के नाम पर उजड़ते गाँवों, खाली होते खेतों और खोते अस्तित्व की चुप्पी में डूबता जा रहा है।
पलायन की पीड़ा, विरान पहाड़, टूटते मकान और विस्मृत होती जड़ें — यह सब न केवल आंकड़े हैं, बल्कि पहाड़ की आत्मा की चीख है।
इन्हीं भावनाओं को शब्द देते हुए श्याम मठपाल ‘उदयपुरी’ ने एक ऐसी रचना लिखी है जो चेतावनी भी है और पुकार भी।
यह कविता हर उस उत्तराखंडी को झकझोरने आई है, जिसने कभी पहाड़ की मिट्टी को माथे से लगाया था।


कविता: “जाग उठो हे उत्तराखंडी”

✒️ स्वरचित रचना: श्याम मठपाल, उदयपुर

जाग उठो हे उत्तराखंडी, इसकी सुनो पुकार।
सिसक रही है देवभूमि अब, करना हमें विचार।।

बंजर हो गए खेत हमारे, सूना हुआ पहाड़।
खंडहर जैसे मकान हो गए, टूटे सभी किवाड़।।
भूतों जैसे गाँव हो गए, नहीं रहा इंसान।
रौनक सारी लुप्त हो गई, भूले अपनी जान।।

जाग उठो हे उत्तराखंडी, इसकी सुनो पुकार।
सिसक रही है देवभूमि अब, करना हमें विचार।।

बात जोहते ठान हमारे, कहाँ मिलें भगवान।
मातृभूमि के रखवाले तुम, कहाँ गया ध्यान?
पंछी छोड़ गए घोंसले, कोई नहीं जवान।
आँगन सारे सूने अपने, गूंगी हुई जुबान।।

जाग उठो हे उत्तराखंडी, इसकी सुनो पुकार।
सिसक रही है देवभूमि अब, करना हमें विचार।।

निर्मोही क्यों बने लाडले, छूटा नहीं खुमार।
अपनी माटी भूल गए क्यों, देख रहा संसार।
लावारिस सा घर हो गया, क्या तुम्हें मलाल?
माफ़ करेगी कैसे माटी? रखना जरा ख्याल।।

जाग उठो हे उत्तराखंडी, इसकी सुनो पुकार।
सिसक रही है देवभूमि अब, करना हमें विचार।।

सीना छलनी होता अपना, माटी बहुत बीमार।
देवभूमि है पावन अपनी, यही तो है आधार।
किसके हाथों सौंप रहे हो, भूले सब बलिदान।
पुरखों की है पूंजी हमारी, किसको देते दान?।

जाग उठो हे उत्तराखंडी, इसकी सुनो पुकार।
सिसक रही है देवभूमि अब, करना हमें विचार।।

दुश्मन चारों ओर खड़े हैं, काहे बने अंजान?
शरणार्थी बन जाओगे तुम, देना होगा बलिदान।
चाहे पहुँचो कहीं जगत में, कैसे मिले सम्मान?
कट जाते जब अपनी जड़ से, झूठा सब गुणगान।।

जाग उठो हे उत्तराखंडी, इसकी सुनो पुकार।
सिसक रही है देवभूमि अब, करना हमें विचार।।


लेखक परिचय:

श्याम मठपाल ‘उदयपुरी’, मूल रूप से उत्तराखंड के निवासी हैं और वर्तमान में उदयपुर में रहते हैं। वे उत्तराखंड की संस्कृति, लोक-समस्याओं और पलायन जैसे मुद्दों पर कविता और गीतों के माध्यम से वर्षों से जन-जागरूकता फैला रहे हैं।
उनकी कविताओं में पर्वतीय चेतना, संवेदना, और संघर्ष की पुकार स्पष्ट झलकती है। यह रचना उत्तराखंड के भविष्य को लेकर उनके भीतर की व्याकुलता की अभिव्यक्ति है।

“क्या तुमने कभी अपने गांव की टूटी खिड़की, वीरान आंगन और सिसकती माटी को सुना है?
श्याम मठपाल की यह कविता तुम्हें तुम्हारी जड़ों तक वापस ले जाएगी — पढ़िए, सोचिए और जागिए।
🔗 #उत्तराखंड #पलायन #देवभूमि #उत्तराखंडीकविता #श्याममठपाल #fikar


  • Related Posts

    बिन्दुखत्ता में वन आरक्षण प्रक्रिया अवैध, राजस्व ग्राम बनाने की मांग फिर तेज

    Spread the love

    Spread the loveवन अधिकार समिति ने जिलाधिकारी नैनीताल को सौंपा पुनः अभ्यावेदन, कहा—1966 की अधिसूचना रद्द कर पूरी की जाए बन्दोबस्ती प्रक्रियाहल्द्वानी, 18 अक्टूबर।उत्तराखंड के सबसे बड़े वन ग्रामों में…

    आयुष्मान योजना में रिकॉर्ड बजट वृद्धि, गंभीर बीमारियों को कवर — हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज को 43.87 करोड़ की प्राप्ति

    Spread the love

    Spread the loveनई दिल्ली/हल्द्वानी। केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी आयुष्मान भारत–प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत वर्ष 2023-24 में बजट आवंटन में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई है। साथ ही, योजना…

    Leave a Reply