संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय आह्वान पर विभिन्न संगठनों का जुलुस प्रदर्शन सभा। भारत छोड़ो दिवस पर “कॉरपोरेट लुटेरों, भारत छोड़ो” दिवस मनाया •

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हल्द्वानी 9 अगस्त

भारत छोड़ो दिवस पर “कॉरपोरेट लुटेरों, भारत छोड़ो” दिवस मनाया •

संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय आह्वान पर विभिन्न संगठनों का जुलुस प्रदर्शन सभा•

बाढ़ और भूस्खलन से प्रभावितों को तत्काल राहत दिए जाने की मांग ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ हमारे ऐतिहासिक स्वतंत्रता संग्राम के प्रेरणाप्रद और ऊर्जावान आह्वान की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए 9 अगस्त को पूरे देश में “भारत छोड़ो दिवस” मनाया जाता है।

इस साल भारत के किसान और खेतिहर मजदूर, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की चली आ रही कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों के विरोध में “कॉर्पोरेट लुटेरों, भारत छोड़ो, खेती छोड़ो” की मांग के लिए अपनी सामूहिक आवाज उठा रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के इसी राष्ट्रव्यापी आह्वान पर संयुक्त किसान मोर्चा जिला नैनीताल के बैनर तले विभिन्न किसान संगठनो और जन संगठनों ने बुद्धपार्क हल्द्वानी में प्रदर्शन कर सभा की। तत्पश्चात बुद्धपार्क से उपजिलाधिकारी कार्यालय हल्द्वानी तक जुलूस निकालकर भारत की राष्ट्रपति को मांग पत्र भेजा गया।

ज्ञापन के माध्यम से राष्ट्रपति के संज्ञान में लाया गया कि एसकेएम ने वन संरक्षण (संशोधन) विधेयक 2023, जिसका उद्देश्य पर्यावरण और जलवायु क्षति की जांच के बिना वन संसाधनों को कॉर्पोरेट घरानों को सौंपना है, के अधिनियमन का पुरजोर विरोध किया है। साथ ही मणिपुर में आदिवासी महिलाओं और आदिवासी लोगों के साथ जो हुआ उसने पूरे देश की अंतरात्मा को झकझोर दिया है। एसकेएम मणिपुर हिंसा पर मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को बरखास्त करने और जल्द से जल्द शांति स्थापित करने की मांग करते हैं। राष्ट्रपति से मांगों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई।

इस अवसर बुद्धपार्क हल्द्वानी में हुई सभा को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रदेश उपाध्यक्ष बहादुर सिंह जंगी ने कहा कि,”केंद्र सरकार राष्ट्रीय संसाधनों जैसे जंगल, नदी और अन्य जल संसाधन और कृषि भूमि पर कॉर्पोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नियंत्रण को बढ़ावा देने के लिए एकाधिकारवादी मित्र पूँजीपतियों के साथ साजिश रच रही है, जिससे किसानों का एक बड़ा वर्ग, जो भारत की आबादी का लगभग 52% हैं, बर्बाद हो रहा है।

उन्हें अपने जीवन और आजीविका से उखाड़ फेंका और विस्थापित किया जा रहा है और उन्हें प्रवासी श्रमिक बनने और गुलामों जैसी परिस्थितियों में रहने और काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।”क्रांतिकारी किसान मंच कालाढुंगी के संयोजक आंनद पाण्डेय ने कहा कि, “भारत के किसान और खेतिहर मजदूर केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों के नवउदारवादी नीतियों और असंवेदनशील प्रशासन के कारण भारत में लाखों किसान परिवार गंभीर रूप से कंगाली और बदहाली के शिकार हो रहे हैं।

एक ओर डब्ल्यूटीओ और आसियान जैसी बहुपक्षीय व्यवस्थाओं के तहत मुक्त व्यापार समझौतों ने घरेलू बाजार में किसानों को मिलने वाली आवश्यक सुरक्षा को नष्ट कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप नकदी फसल की कीमतों में प्रणालीगत और लंबी गिरावट आई है। वहीं दूसरी ओर बीज, उर्वरक, कीटनाशक, बिजली, सिंचाई और पानी की आपूर्ति सहित सभी इनपुट सब्सिडी को खत्म किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन की लागत में भारी वृद्धि हुई।”किसान महासभा के जिला अध्यक्ष भुवन जोशी ने कहा कि, “दिल्ली की सीमाओं पर संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के नेतृत्व में साल भर चले ऐतिहासिक किसान आंदोलन के बाद केंद्र सरकार ने 9 दिसंबर 2021 को एसकेएम के साथ एक लिखित समझौता किया था, जिसमें सभी फसलों और उसकी खरीद के लिए कानूनी रूप से गारंटीकृत सी 2+50% की दर से न्यूनतम समर्थन मूल्य, ऋण मुक्ति, बिजली निजीकरण विधेयक को वापस लेना सहित किसानों और खेतिहर मजदूरों की कई न्यायसंगत और लंबित मांगों के समाधान का वादा किया गया था।

लेकिन, 19 महीने बाद भी प्रधानमंत्री उन वादाओं को पूरा करने के इच्छुक नहीं हैं जो उनकी सरकार ने किसानों को लिखित रूप में दी थी। यह रवैया केंद्र सरकार के सत्तावादी और अलोकतांत्रिक चरित्र को रेखांकित करता है।”भाकपा माले जिला सचिव डा कैलाश पाण्डेय ने कहा कि, “हाल ही में आयी बाढ़ और भूस्खलन ने हिमालय की पहाड़ियों और मैदानी भाग को तबाह कर दिया है। 160 लोगों की जान चली गई, हजारों घर पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए, लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि और खड़ी फसलें जलमग्न हो गईं, हजारों मवेशी, छोटे जुगाली करने वाले जानवर और मुर्गियों का नुकसान हुआ। हम पुरजोर मांग करते हैं कि इस तबाही को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाए। नुकसान का आकलन करने के लिए तुरंत अधिकारियों को तैनात किया जाए और बिना किसी देरी के उचित मुआवजा दिया जाए।

इस तरह का मुआवजा, खड़ी फसलों के नुकसान के लिए 70000 रुपये प्रति एकड़, जीवन के नुकसान के लिए 10 लाख रुपये, पूरी तरह से क्षतिग्रस्त मकानों के लिए 5 लाख रुपये, मवेशियों के नुकसान पर 1 लाख रुपये, छोटे जुगाली करने वाले जानवरों के नुकसान पर 25000 रुपये और मुर्गी पालन के नुकसान पर 500 रुपये प्रति मुर्गी से कम नहीं होना चाहिए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि केंद्र सरकार ने किसानों और आम लोगों के दुखों को कम करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है, जिसे तुरंत उठाया जाना चाहिए था।

“क्रालोस के मोहन मटियाली ने कहा कि, “नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली अक्षम और असंवेदनशील केंद्र सरकार, जो पूरी तरह से कॉर्पोरेट शक्तियों के चंगुल में है, के हाथों किसानों द्वारा सामना किए जा रहे सभी भौतिक कारकों और अनुभवों पर सावधनीपूर्वक विचार करने के बाद भारत के किसानों के पास निम्नलिखित मांगों के लिए पूरे भारत में बड़े पैमाने पर फिर से संघर्ष शुरू करने और तेज करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।

“आज की मांगें:

1) गारंटीकृत खरीद की व्यवस्था के साथ सभी फसलों के लिए सी2+50% की दर से लाभकारी एमएसपी के लिए कानून लागू किया जाए। एमएसपी कानून बनाने के लिए स्पष्ट संदर्भ की शर्तों के साथ एसकेएम के प्रतिनिधियों को शामिल करके किसानों के उचित प्रतिनिधित्व के साथ एमएसपी पर समिति का पुनर्गठन किया जाए।

2) सरकार की नीतियों और लापरवाही के कारण ऋणग्रस्तता के जाल में फसे सभी कृषक परिवारों के लिए माइक्रो–फाइनेंस और निजी ऋण सहित सभी प्रकार के कर्ज से मुक्ति के व्यापक ऋण मुक्ति योजना लागू किया जाए।

3) बिजली संशोधन विधेयक 2022 को वापस लिया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि बिजली कनेक्शन न काटी जाए, प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 300 यूनिट मुफ्त बिजली प्रदान की जाए, पानी पंपों के लिए मुफ्त बिजली प्रदान की जाए और कोई प्रीपेड मीटर न लगाया जाए।

4) लखीमपुर खीरी में पत्रकार और किसानों के नरसंहार के मुख्य साजिशकर्ता केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी को बर्खास्त किया जाए और उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जाए।

5) लखीमपुर खीरी में जेल में बंद किसानों पर दर्ज फर्जी मुकदमे वापस लिया जाए और उन्हें रिहा किया जाए।6) ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दौरान भाजपा शासित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों सहित सभी राज्यों में किसानों के खिलाफ दर्ज किए गए सारे लंबित मामलों को वापस लिया जाए।

7) ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दौरान शहीद हुए सभी किसान परिवारों को मुआवजा दिया जाए और उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाए।

8) ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दौरान शहीद हुए सभी किसानों के लिए सिंघू बॉर्डर पर भूमि आवंटित किया जाए और एक स्मारक का निर्माण किया जाए।

9) कॉर्पोरेट समर्थक प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को वापस लिया जाए और जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखा, फसल संबंधी बीमारियों आदि के कारण किसानों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए सभी फसलों के लिए एक व्यापक फसल बीमा योजना लागू किया जाए।

10) सभी मध्यम, लघु और सीमांत पुरुष और महिला किसानों और कृषि श्रमिकों के लिए प्रति माह ₹10,000 की किसान पेंशन योजना लागू की जाए।आज के कार्यक्रम में मुख्य रूप से अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रदेश उपाध्यक्ष बहादुर सिंह जंगी, क्रांतिकारी किसान मोर्चा के संयोजक आंनद पाण्डेय, किसान महासभा के जिला अध्यक्ष भुवन जोशी, माले जिला सचिव डा कैलाश पाण्डेय, क्रालोस के मोहन मटियाली, पछास के चंदन, महेश, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की रजनी जोशी, ऐक्टू के किशन बघरी, अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन ऐपवा की विमला रौथाण, निर्मला शाही, माले नेता ललित मटियाली, गोविंद सिंह जीना, पुष्कर सिंह दुबड़िया, कमल जोशी, प्रभात पाल, हरीश भंडारी, आंनद सिंह दानू, बबलू भट्ट, पलविंद्र सिंह, त्रिलोक सिंह दानू आदि मुख्य रूप से शामिल रहे।

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